ग़ज़ल- ऐ गुलफ़रोश कोई ऐसा फूल दिखाओे
ऐ गुल्फ़रोश प्रीत के दिलबाघ में मुझे बो कर जाओ,
ख़ुशबू का उससे न हो फ़ुरकत, कोई ऐसा फूल दिखाओ ।
ख़ुशबू का उससे न हो फ़ुरकत, कोई ऐसा फूल दिखाओ ।
फूलों के कारोबार में बिकती है मोहब्बत की कड़ियाँ,
लफ़्ज़ों बिन जो प्रेम दास्तान कह जाए, कोई ऐसा फूल दिखाओ ।
फेंको रात की रानी, जिसके हैं विशैले आशिक़,
जिससे परायों की नज़र न लगे हीर को, कोई ऐसा फूल दिखाओ ।
ख़ूबसूरती गुलाब, मोग्रे, कमल की हर शायर दोहराए,
मेरी शिद्दत की अनोखी ख़ूबसूरती वाला कोई ऐसा फूल दिखाओ ।
सूरजमुखी आफ़ताब का दीवाना, चंद्रमुखी दिन में नज़र छुपाता,
पिया का जो दीदार करे सदा, कोई ऐसा फूल दिखाओ ।
इश्क़ जतानेवालों का जिगर हमारे पास कहाँ,
मेरी सूरत की ख़ामियाँ ढक दे जो कोई ऐसा फूल दिखाओ ।
सब शर्तें मानकर गुल्फ़रोश ने एक खारदार पौधा दिखाया,
माशूक़ बौखलाकर बोला कोई हसीन फूल दिखाओ ।
कहे गुलफ़रोश, इश्क़ पूछे हसीन रूह, ना हसीन फूल,

Very creative, wonderful piece 👍👍
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